समय से पहले जन्मे शिशुओं को सता सकती है गुर्दे की बीमारी
नई दिल्ली। समय से पहले जन्मे शिशुओं में आगे चलकर गुर्दे की बीमारी क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) विकसित होने का जोखिम बना रह सकता है, यह बात एक शोध में सामने आई है।
बीएमजे में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक, प्रीटर्म बर्थ यानी 37 सप्ताह की गर्भावस्था से पहले ही शिशु का जन्म होने पर गुर्दे के विकास और परिपक्वता में बाधा उत्पन्न होती है। इस कारण कम नेफ्रॉन बन पाते हैं। नेफ्रॉन वे फिल्टर हैं, जो शरीर से बेकार और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं।
भारत में अंतिम चरण के गुर्दे की विफलता विकसित करने वाले सभी रोगियों में से केवल 10 से 15 प्रतिशत को ही उचित उपचार मिलता है। लगभग 6,000 किडनी प्रत्यारोपण, 60,000 हेमोडायलिसिस से गुजरते हैं, और अन्य 6,000 एक वर्ष में पेरिटोनियल डायलिसिस लेते हैं। गुर्दे की रिप्लेसमेंट थेरेपी की चाह में लगभग छह लाख लोग मर जाते हैं।
अंतिम चरण की किडनी की बीमारी विकसित करने वाले सभी रोगियों में से, 90 प्रतिशत से अधिक को गुर्दे की रिप्लेसमेंट थेरेपी की जरूरत होती है, क्योंकि देखभाल का खर्च वहन करने में असमर्थता के चलते और 60 प्रतिशत वे लोग भी जो वित्तीय कारणों से उपचार को बीच में ही छोड़ देते हैं। मई, 2017 तक डायलिसिस पर निर्भर रोगियों की संख्या 1,30,000 से अधिक थी। यह संख्या लगभग 232 प्रति 10 लाख जनसंख्या के हिसाब से बढ़ रही है।
हार्टकेयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि सीकेडी का अर्थ है समय के साथ गुर्दे की कार्यक्षमता में कमी होते जाना और अंत में गुर्दे का विफल हो जाना। इससे मरीजों को डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण से गुजरना पड़ता है। बीमारी के संकेत और लक्षण तब तक ध्यान देने योग्य नहीं होते, जब तक कि रोग काफी अच्छी तरह से बढ़ नहीं जाता, और स्थिति गंभीर न हो गई हो।
उन्होंने कहा कि सीकेडी के एक उन्नत चरण में, शरीर में तरल पदार्थ, इलेक्ट्रोलाइट्स और कचरे के खतरनाक स्तर का निर्माण हो सकता है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, किडनी की असामान्य संरचना और बीमारी के पारिवारिक इतिहास जैसी अंतर्निहित स्थितियों के साथ वे अधिक जोखिम में हैं। इसके अलावा, जो लोग धूम्रपान करते हैं और मोटापे का शिकार होते हैं, वे भी लंबी अवधि में सीकेडी का शिकार हो सकते हैं।’’
इस स्थिति के कुछ लक्षणों में मतली, उल्टी, भूख में कमी, थकान और कमजोरी, नींद की समस्या, मानसिक सक्रियता में कमी, मांसपेशियों में मरोड़ व ऐंठन, लगातार खुजली, सीने में दर्द, सांस की तकलीफ और उच्च रक्तचाप शामिल हैं।
डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, ‘‘गुर्दे की बीमारियों को दूर रखने के लिए कुछ प्रमुख उपाय क्रमश: परिस्थितियों और मोटापे और डिसिप्लिडिमिया जैसी बीमारियों की निगरानी और उपचार करना है। यदि रक्तचाप और रक्त शर्करा को नियंत्रण में रखा जाए, तो 50 प्रतिशत से अधिक सीकेडी मामलों को रोका जा सकता है।’’
कुछ सुझाव :
* तंदुरुस्त और सक्रिय रहें, क्योंकि यह आपके रक्तचाप और गुर्दे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
* अपने ब्लड शुगर लेवल को नियमित रखें, क्योंकि जिन लोगों को मधुमेह है, उनमें से आधों में किडनी को नुकसान पहुंच सकता है।
* अपने रक्तचाप की निगरानी करें। यह गुर्दे की क्षति का सबसे आम कारण भी है। सामान्य रक्तचाप का स्तर 120 प्रति 80 है। इस स्तर और 129 प्रति 89 के बीच, आपको प्रीहाइपर सेंसिटिव कहा जा सकता है। आपको जीवनशैली और आहार में परिवर्तन करना चाहिए।
* स्वस्थ खाएं और अपना वजन नियंत्रित रखें, क्योंकि यह मधुमेह, हृदय रोग और सीकेडी से जुड़ी अन्य स्थितियों को रोकने में मदद कर सकता है। नमक कम खाएं। अनुशंसित सोडियम सेवन प्रतिदिन 5 से 6 ग्राम नमक है। नमक का सेवन कम करने के लिए, प्रोसेस्ड और रेस्तरां वाले भोजन की मात्रा कम करने का प्रयास करें।
* स्वस्थ तरल पदार्थ का सेवन बनाए रखें। पारंपरिक ज्ञान ने लंबे समय तक प्रति दिन 1.5 से 2 लीटर (3 से 4 पिंट) पानी पीने का सुझाव दिया है। प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करने से किडनी, सोडियम, यूरिया और शरीर से विशाक्त पदार्थों को साफ करने में मदद मिलती है, जिससे बदले में, सीकेडी विकसित होने का जोखिम काफी कम हो जाता है।
* धूम्रपान न करें, क्योंकि यह गुर्दे तक रक्त के प्रवाह को धीमा कर देता है। धूम्रपान से किडनी कैंसर का खतरा भी लगभग 50 प्रतिशत बढ़ जाता है।
* नियमित रूप से ओवर-द-काउंटर गोलियां न लें। इबुप्रोफेन जैसी दवाओं को नियमित रूप से लेना गुर्दे की क्षति और बीमारी का कारण माना जाता है।
(आईएएनएस)
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