कुर्बानी का महत्व
गर कुर्बानी नहीं दी
ईद उल
अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। अगर
साहिबे हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार
होगा। जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महँगे जानदार की की जाए। हर जगह
जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, आप उसमें भी हिस्सेदार बन सकते
हैं।
अगर किसी शख्स ने साहिबे हैसियत होते हुए कई सालों से
कुर्बानी नहीं दी है तो वह साल के बीच में सदका करके इसे अदा कर सकता है।
सदका एक बार में न करके थोडा-थोडा भी दिया जा सकता है। सदके के जरिये से ही
मरहूमों की रूह को सवाब पहुंचाया जा सकता है।