जानें अजान के महत्व के बारे में
इस्लाम में नमाज के लिए बुलाने के लिए ऊंचे स्वर में जो शब्द कहे जाते हैं। उन्हें कहते हैं। शुरूआत मदीना तैयबा में जब नमाज बाजमात देने के लिए मस्जिद बनाई गई तो जरूरत महसूस हुई कि लोगों को जमात इकठ्टे नमाज पढने का वक्त करीब होने की सूचना देने का कोई तरीफ तय किया जाए। रसूलुल्लाह ने जब इस बारे में सहाबा इकराम धर्म मित्रों से परामाइर्श किया तो इस बारे में चार प्रस्ताव सामने आए।
प्रार्थन के वक्त कोई झंडा बुलंद किया।
किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए।
यहूदियों की तरह बिगुल बजाया जाए।
ईसाइयों की तरह घंटियां बजाई जाए।
उपरोक्त सभी प्रस्ताव आंहजरत को गैर मुस्लिमों से मिलते जुलते होने के कारण पसंद नहीं आए। इस परेशानी में आंहजरत और सहाबा इकराम चिंतित थे कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हजरत अब्दुल्लाह बिन जैद ने स्वप्न में देखा कि किसी ने उन्हें अजान और इकामत के शब्द सिखाए हैं। उन्होंने सुबह सवेरे आंहजरत सेवा में हाजिर होकर अपना सपना बताया तो आंहजरत ने इसे पसंद किया और उस ख्वाब में अल्लहा की ओर से सच्चा ख्वाब बताया।
आंहजरत ने हजरत अब्दुल्लाह बिन जैद से कहा कि तुम हजरत बिलाल को अजान इन शब्दों में पढने की हिदायत कर दो, उनकी आवाज बुबंद है इसलिए वह हर नमाज के लिए इसी तरह अजान दिया करेंगे। इसलिए उसी दिन से अजान की प्रणाली स्थापित हुई और इस तरह हजरत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम के पहले अजान देने वाले के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जैसे ही इस्लाम की बात आती है, तो हमें सबसे पहले याद आता है दिन में पांच बार मस्जिदों के लाउडीस्पीकर में दिया जाने वाला अजान। अजान इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, हर मुस्लिम के लिए नमाज पढना जरूरी है। तो आईये जानते हैं नमाज का सच।