शादी करने जा रहे हैं तो इस आर्टिकल को जरूर पढ लें
शादी को हिंदू धर्म में पवित्र बंधन माना गया है लेकिन शादी करने से
पहले कुछ खास बातों का ध्या न रख लिया जाए तो जीवन सुखमय हो सकता है।
सामान्यत: कुंडली में अष्ट कूट एवं मांगलिक दोष ही देखा जाता है, लेकिन यह
जान लेना अनिवार्य है कि कुंडली मिलान की अपेक्षा कुंडली की मूल संरचना अति
महत्वपूर्ण है। कुंडली के बारह भावों में सप्तम भाव दांपत्य का है, इस भाव
के अलावे आयु, भाग्य, संतान, सुख, कर्म, स्थान का पूर्णत: विश्लेषण एक
सीमा में अनिवार्य है।
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हिंदू वैदिक संस्कृति में विवाह से पूर्व जन्म कुंडली
मिलान की शास्त्रीय परंपरा है, लेकिन आपने बिना जन्म कुंडली मिलाए ही
गंधर्व विवाह यानी प्रेम-विवाह कर लिया है तो घबराएं या डरें नहीं, बल्कि
यह मान लें कि ईश्वरीय शक्ति द्वारा आपका ग्रह मिलान हो चुका है। हिन्दू
संस्कृति में विवाह को सर्वश्रेष्ठ संस्कार बताया गया है। क्योंकि इस
संस्कार के द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिद्धि प्राप्त
करता है।
पत्नी को नींद न आए,नींद पूरी न हो तो समझो
विवाहोपरांत ही मनुष्य देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण से मुक्त
होता है।
समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं- पहला परंपरागत विवाह यानी
प्राचीन ब्रह्म विवाह और दूसरा अपरंपरागत विवाह परंपरागत विवाह माता-पिता
की इच्छा अनुसार संपन्न होता है, जबकि प्रेम विवाह में लड़के और लड़की की
इच्छा और रूचि महत्वपूर्ण होती है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन
संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा
जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का
जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण
सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा
हो यही कामना की जाती है।
ऐसा माना जाता है इस सृष्ठि में प्रत्येक जीवित प्राणी का अपना
उर्जा क्षेत्र होता है। इन प्राणियों के उर्जा क्षेत्र किसी ना किसी ग्रह
या किसी राशि के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। संसार के सभी उर्जा
क्षेत्र किसी ग्रह या राशि के द्वारा परिचालित होने के कारण अन्य सभी उर्जा
क्षेत्रों के साथ संगत नहीं होते हैं। उदाहरण स्वरुप, पानी और अग्नि का एक
दूसरे के साथ मेल नहीं हो सकता,क्योंकि पानी आग को बुझा सकता है। यह वह
स्थान है जहां कुंडली मिलान का रिवाज काफी महत्वपूर्ण हो जाता है,जैसाकि यह
प्रस्तावित जोड़े की संगत के विषय में उचित राय देता है।
वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की
कुंडली का मिलान कराया जाता है।
किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा
भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। साथ ही
दोनों की पत्रिका में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इनका वैवाहिक जीवन
कैसा रहेगा? यह भी सटिक अंदाजा लगाया जाता है। यदि दोनों की कुंडलियां के
आधारइनका जीवन सुखी प्रतीत होता है तभी ज्योतिषी विवाह करने की बात कहता
है।
कुंडली मिलान से दोनों ही परिवार वर-वधू के बारे काफी जानकारी
प्राप्त कर लेते हैं। यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में कोई दोष हो
और इस वजह से इनका जीवन सुख-शांति वाला नहीं रहेगा, ऐसा प्रतीत होता है तो
ऐसा विवाह नहीं कराया जाना चाहिए।
कुंडली के सही अध्ययन से किसी भी व्यक्ति के सभी गुण-दोष जाने जा सकते हैं।
कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ही हमारा व्यवहार,
आचार-विचार आदि निर्मित होते हैं। उनके भविष्य से जुड़ी बातों की जानकारी
प्राप्त की जाती है। कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों
भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की
कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो
जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।
व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं
है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना
उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से
सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे
में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है
क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक
ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस लिए गुण
मिलान की यह विधि कुंडलियों के मिलान की विधि का एक हिस्सा तो हो सकती है
लेकिन पूर्ण विधि नहीं।
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