कहीं मैं रिजेक्ट न हो जाऊं

कहीं मैं रिजेक्ट न हो जाऊं

कोई इंटरव्यू देते समय डेटिंग में या विवाह तय होते समय हम सभी के मन में कहीं न कहीं यह भय होता है कि हमें न तो नहीं कह दिया जाएगा। यह भय बढता है तो फोबिया बन जाता है और मुश्किल खडी कर देता है। रिजेक्शन के भय की जडें बचपन में छिपी होती हैं। माता-पिता जब दो बच्चों के बीच तुलना करते हैं तो भय का बीज बो रहे होते हैं। बाद के जीवन में इसका सामना ना कर सके तो यह व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगता है। दो ही रास्ते हैं या तो इस भय में जीते रहें या इसे भूलकर आगे बढें। एक लेखक की पंक्तियां हैं दरअसल लोग इनकार से ज्यादा उसकी कल्पना करते हुए डरते हैं। सफल जीवन के लिए जरूरी है कि इस भय का सामना करें और इस जिंदगी का एक सबक समझें।