पति के कदम जब फिसल तो आजमाएं...
जब पति अपनी प्रेमिका की खातिर पत्नी से दूर होने का फैसला मन ही मन कर लेता है तब इश्क का रोग गंभीर रूप ले लेता है। पति तलाक लेने का इच्छुक बन जाएगा या फिर मानसिक व भावनात्मक स्तर पर कैसा भी संबंध पत्नी के साथ कायम रखने में उस की दिलचस्पी नहीं होगी। अब प्रेमिका के अस्तित्व को पत्नी की नजरों से छिपा कर रखने में पति की दिलचस्पी नहीं रहती। गुस्सा उस की नाक पर रहता है और आंखों से छोटी सी बात पर भी नफरत की चिनगारियां बरसने लगेंगी। उसे पत्नी के सुख-दुख से कोई वास्ता नहीं रहता। बेमेल जोडी बन जाने के दुखडे रोने के साथ-साथ वह पत्नी को छुटकारा पाने की धमकी खुलेआम देने लगता है। झगडों के बाद की खामोशी बडी गहरी होती है। पत्नी कोशिश कर के भी उसका ध्यान, प्रेम या सहानुभूति नहीं पा सकती। उसे बारबार महसूस होता है कि मानों उस का ध्यान,प्रेम या सहानुभूति नहीं पा सकती। उसे बारबार महसूस होता है कि मानो उस ने अपने पति को सदा को लिए खो दिया है। उस का रोना,आंसू बहाना, गिडगिडाना पति के अंदर कोई बदलाव नहीं ला पाता है। पति को लगे इश्क के रोग का इस स्टेज पर इलाज संभव नहीं। पत्नी चाह कर भी दिलों के बीच की खाई को नहीं पाट पाएगी। अब उस का प्यार,उस की सेवा व समर्पण भी पति को चिढाएगा ही। पति के दूसरी औरत से चल रहे इश्क के बुखार को उतारने के लिए पत्नी को आरंभिक लक्षण पकड में आते ही पूरी ताकत से प्रयास शुरू कर देने चाहिए तभी वह समस्या का समाधान भी पा सकती है। पति आकष्ा�क व्यक्तित्व के स्वामी हों तो डर कर अकारण ही उन पर शक करने की नासमझी भी न दिखाएं। किसी स्त्री के साथ उन का चक्कर चलने की जानकारी मिले तो बौखला जाना भी ठीक नहीं। इस स्थिति में रोने-धोने, झग़डने व शिकायतें करने से मामला दब तो सकता है, पर सुलझेगा नहीं। अपने दाम्पत्य संबंधों पर गंभीर दृष्टि डालें और अपनी कमियों को सुधारने पर ज्यादा ध्यान दें। मौखिक संवाद से ही नहीं बल्कि एक्शन से भी समस्या समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। पति को उन के गलत कदमों के दूरगामी परिणाम शांतिपूर्ण ढंग से समझाएं। अपने व्यक्तित्व को आकष्ा�क बनाने के लिए उसे निखारें व नयापन लाएं, दूसरी औरत से उन्हें दूर करने को शोर मचाने से ज्यादा खुद को उनके दिल के करीब लाने वाले प्रयास करना ज्यादा जरूरी है। यानी अपने कर्तव्यों को निभाते हुए अधिकारों की मांग करें।