मुंडन संस्कार क्यों!

मुंडन संस्कार क्यों!

बालक का कपाल करीब 3 वर्ष की अवस्था तक कोमल रहता है। तत्पश्चात धीरे-धीरे कठोर होने लगता है। गर्भावस्था में ही उसके सिर पर उगे बालों के रोमछिद्र इस अवस्था तक कुछ बंद से हो गए रहते है। अत: इस अवस्था में शिशु के बालों को उस्तरे से साफ कर देने पर सिर की गंदगी, कीटाणु आदि तो दूर हो ही जाते हैं, मुंडन करने पर बालों के रोमछिद्र भी खुल जाते है। इससे नये बाल घने, मजबूत व स्वच्छ होकर निकलते हैं। सिर पर घने, मजबूत और स्वच्छ बालों का होना मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए आवश्यक है अथवा यो कहें कि सिर के बाल सिर के रक्षक हैं, तो गलत न होगा। इसलिए चूडाकर्म एक संस्कार के रूप में किया जाता है। ज्योषिशास्त्र के अनुसार किसी शुभ मुहूर्त एवं समय में ही यह संस्कार करना चाहिए। चूडाकर्म संस्कार से बालक के दांतों का निकलना भी आसान हो जाता है। इस संस्कार में शिशु के सिर के बाल पहली बार उस्तरे से उतारे जाते हैं। कहीं-कहीं कैंची से बाल एकदम छोटे करा देने का भी चलन है। जन्म के पश्चात प्रथम वर्ष के अंत तथा तीसरे वर्ष की समा�प्त के पूर्व मुंडन संस्कार कराना आमतौर पर प्रचलित हैं, क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार एक वर्ष से कम की उम्र में मुंडन संस्कार करने से शिशु की सेहत परबुरा प्रभाव पडता है और अमंगल होने की आशंका रहती है। फिर भी कुलपरंपरा के अनुसार पांचवें या सातवें वर्ष में भी इस संस्कार को करने का विधान है।