गोवर्धन पर्वत की अनोखी कथा
सभी हिन्दूजनों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का महत्व है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभसंप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा सात कोस अथा्रत लगभग 21 किलोमीटर है। परिक्रमा मार्ग में पडने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जातिपुरा, मुखार्विद मंदिर, राधाकुं ड मानसी गंगा, पूंछरी का लौंठा, कुसुम सरोवर, दानघाटी इत्यादि हैं। गोवर्धन में सुरभि गाय, ऎरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान कृष्ण के चरण चिद्ध है। परिक्रमा की शुरूआत वैष्णवजन जातिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वही पहुंच जाते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहां आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहां परिक्रमा करने आए है। यह अर्जी लगाने जैसा है। पूंछरी का लौठा क्षेत्र राजस्थान में आता है।