लडकियां अभी भी हैं आशिक्षा के दायरे में

लडकियां अभी भी हैं आशिक्षा के दायरे में

देश में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। छह से 14 साल के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा का कानून इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन लक्ष्य, खासकर बालिकाओं के संदर्भ में अब भी कोसों दूर है। गैर सरकारी संगठन चिल्ड्रेन राइट्स एण्ड यू (क्राई) ने एक अध्ययन के आधार पर उन कठिनाइयों का जिक्र किया है, जिनका सामना लडकियां आज भी स्कूल और स्कूल जाने में करती हैं और जिसकी वजह से वे हाई स्कूल पहुंचते-पहुंचते पढाई छोड देती हैं। लडकों की तुलना में लडकियों का जल्दी विवाह, घर से स्कूल की दूरी व उचित परिवहन का अभाव, घरेलू कामकाज में हाथ बंटाना, अलग शौचालय का अभाव, शिक्षिका का न होना, सुरक्षा का अभाव, छोटे-भाई-बहनों की देखभाल कुछ ऎसे कारण हैं, जो उनकी पढाई जारी रखने में बाधक बनते हैं। बालिकाओं की शिक्षा पर इस रिपोर्ट को सभी स्तरों पर दुरूस्त करने की जरूरत है। पिछले दो दशक में हालांकि हमने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में अब भी एक बडा अंतर है। सर्वेक्षण नतीजों से यह भी जाहिर होता है कि लोगों को बालिका शिक्षा के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है, जो एक बडी बाधा है। क्राई ने पांच शहरों- दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू, चेन्नई और कोलकाता में सर्वेक्षण के आधार पर बुधवार को इसके नतीजे जारी किए। देशभर की छात्राओं और उनके अभिभावकों ने शिक्षा के अधिकार आरटीई कानून के तहत आने वाले स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय न होने को एक बडी चिंता बताया। सर्वेक्षण से मालूम हुआ कि आरटीई के तहत आने वाले केवल 44 प्रतिशत स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है। अन्य स्थानों पर लडकियों को या तो सामान्य शौचालयों में जाना पडता है या नजदीकी खेतों में अथवा घर जाना पडता है। लडकियों की शिक्षा के मार्ग में उनके साथ होने वाला दुर्व्यवहार भी एक बडा कारण है। इस संदर्भ में दिल्ली के ही आंकडों पर गौर किया जाए तो करीब 48 प्रतिशत ने कहा कि उनके साथ स्कूल जाते वक्त दुर्व्यवहार होता है, जबकि 33 प्रतिशत का कहना है कि उनके साथ स्कूलों में गलत व्यवहार होता है। आरटीई कानून को अमल में आए करीब ढाई साल हो गए हैं, लेकिन इस बारे में बहुत से लोगों को अब भी जानकारी नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी 29 प्रतिशत लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक लोग बालिकाओं के लिए सरकार की ओर से चलाई जाने वाली योजनाओं को लेकर जागरूक नहीं हैं। वहीं अधिकतर लोगों को लडकियों की शिक्षा से अधिक उनका विवाह महत्वपूर्ण लगता है और इसलिए वे इसे जल्दी निपटाने के पक्ष में हैं। दिल्ली के करीब 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि लडकियों की शादी लडकों से पहले कर देनी चाहिए। वहीं, 48 प्रतिशत ने लडकियों की शादी के लिए आदर्श उम्र 16-18 वर्ष बताई। राष्ट्रीय राजधानी में करीब 43 प्रतिशत लोगों ने कहा कि लडकियों को स्कूल जाने-आने में परेशानी होती है। आधे से अधिक लोगों ने कहा कि मौजूदा परिवहन लडकियों के लिए सुरक्षित नहीं है। क्राई ने साथ ही साथ इच्छा नाम से एक फोटो अभियान भी चलाया। देश भर से बालिकाओं की शिक्षा के राह में आने वाले अवरोधों को ध्यान में रखकर फोटो मंगवाए गए जिनकी प्रदर्शनी आगामी छह से सात अक्टूबर को नई दिल्ली में लगाई जाएगी। इसमें रघु राय, प्रशांत पंजियार, सुधारक ओल्वे और निलयम दत्ता जैसे नामचीन फोटोग्राफरों ने योगदान दिया है। इस रिपोर्ट और फोटो अभियान के बारे में क्राई के पदाधिकारी सरकारी अधिकारियों और नीति निर्धारकों से मुलाकात करेंगे और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाने की मांग करेंगे।