हर हिंदू को सूतक और पातक के नियम जानने हैं बेहद जरूरी
हिंदू धर्म में जन्म और मरण और ग्रहण के समय सूतक के बारे में बहुत अधिक
चर्चा होती है। ज्यादातर लोग पुराने अनुभवों के अनुसार जैसा बुजुर्ग कहते
हैं वैसा ही करने लगते हैं लेकिन बहुत कम लोग ही जान पाते हैं कि सूतक और
पातक क्या होते हैं और उनका जीवन पर क्या असर पडता है। देखा जाए तो सूतक
का सम्बन्ध जन्म के निम्मित से हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो नाल
काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती
है, उसमे लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरुप सूतक माना जाता है।
पातक का सम्बन्ध मरण के निम्मित से हुई अशुद्धि से है। मरण के अवसर पर
दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष या पाप
के प्रायश्चित स्वरुप पातक माना जाता है।
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जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक -10 दिन, 4 पीढ़ी तक - 10 दिन, 5 पीढ़ी तक - 6 दिन गिनी जाती है।
एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती ... वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है।
प्रसूति
(नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह तक
अशुद्ध है। इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !
पुत्री पीहर में बच्चे का जन्म हो तो हमे 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे
तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है और हमे कोई सूतक नहीं रहता है।
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पातक का अर्थ भी जानें
पातक का सम्बन्ध मरण के निम्मित से हुई अशुद्धि से है। मरण के
अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष
या पाप के प्रायश्चित स्वरुप पातक माना जाता है।
जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती
है, न कि मृत्यु के दिन से।
यदि घर का कोई सदस्य बाहर, विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है।
अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है।
किसी
स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही
दिन का पातक मानना चाहिए।
घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले
जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर
उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है।
किसी अन्य की शवयात्रा
में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा
देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए।
घर में कोई आत्मघात करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए। जिसके घर में इस
प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल
भी ग्रहण नहीं करता है। वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य
मंदिर जी में चढ़ाया जाता है।
सूतक-पातक की अवधि में "देव-शास्त्र-गुरु" का पूजन,
प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं।
इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है। यहां तक की
गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है लेकिन ये कहीं नहीं कहा कि
सूतक-पातक में मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है।
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