बच्चों के पहले मार्गदर्शक माता-पिता

बच्चों के पहले मार्गदर्शक माता-पिता

आज के इस आधुनिक दौर में बच्चो को संभालना और उनका सही प्रकार से मार्गदर्शन करना काफी मुश्किल होता जा रहा है। ऎसे में बच्चो को समझें और अपना पूरा सहयोग करें, क्योंकि बच्चे अपने आने वाले भविष्य में क्या करेगें, वो आज पर ही निर्भर करता है। इसलिए माता-पिता के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के साथ ही इन बच्चाो में जो गुण हैं उनका भी ध्यान रखें, जिससे बच्चो में उत्साह जाग्रित हो और वे अपने भविष्य में आगे बढें। बच्चा जो भी कुछ अच्छा करे माता-पिता को चाहिए कि बच्चो की तारीफ करें तथा उसके आगे बढने में उसका साथ दें,उस के वशंआनु खूबियों के नहीं बल्कि उनके शौक की भी तारीफ करें। लेकिन हमने कई बार देखा है कि जिन बच्चो की वशंआनु गुणों की तारीफ होती है, उन बच्चो की अपनी लाइफ में बडे चैलैंज लेने से थोडे से घबराहट होती है। उनके मन में इस बात को डर बैठ जाता है कि अगर वे इस चैलैंज को पूरा नहीं कर पाये तो सब लोग मेरा मजाक बनाएंगे, दूसरा अपने माता-पिता की उम्मीदों को पूरा करने की चिंता, प्रतिस्पर्धा में अव्वल आना, पढाई में 95 प्रतिशत लाना और अगर ये सब नहीं हुआ तो मेरी इमेज खराब हो जाएगी।
अकसर देखा गया है कि जिन बच्चों की ऎसी प्रतिभा की तारीफ होती है वे बडी चुनौतियों को अपनाने से कतराते है, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि कहीं उन की इमेज खराब न हो जाए जबकि बच्चों का पूरा विकास तभी होता है जब वे नई-नई चुनौतियों को स्वीकार कर उन से जूझते है और असफल होने पर अपनी गलती से सबक लेकर फिर आगे बढते हैं, ऎसा करके ही वे कुछ खास कर पाते हैं। इसके लिए माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के स्कूल पसफार्मेस पर खास ध्यान दें और उनके अध्यापकों से निरन्तर सम्पर्क में रहें। टीचर से बच्चो की गतिविधियों पर बात करते रहें। इसके साथ ही साथ बच्चो की किसी रचनात्मक/खेल में ज्यादा रूचि है उसे उत्साहित करें।
संतुलित आहारं
बचपन से ही बच्चो को संतुलित आहार देना चाहिए जिससे वे हैल्दी और स्माटं बनें, क्योंकि बच्चो को बचपन से ही पौष्टिक पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है। 8-10 साल के होने पर उसे प्रोटीन से भरपूर डाइट शुरू कर देनी चाहिए इस उम्र में बच्चो को पिता की तुलना में तीन चौथाई खाना चाहिए होता है। इस उम्र में बच्चो को संतुलित खाना खाना चाहिए जैसे दूध, सोयाबीन, अंडे, मछली आदि देना चाहिए जो बच्चो की कार्यशीलता और सोचने की शक्ति को बढता है। बच्चों के मानसिक विकास के लिए एक तो दूध बहुत जरूरी है ये हçड्डयों को मजबूत बनाता है इसलिए उसे प्रतिदिन 1 गिलास दूध नियमित जरूर दें, कम से कम 8 गिलास पानी पीने को कहें।
सकारात्मक सहयोग

माता-पिता बच्चो की परवरिश में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखते उनके बच्चो में ये देखा जाता है वे पढाई-लिखाई काफी इंटैलिजेंस होते हैं और उन में व्यावहारिक समस्याऎ भी बहुत कम देखने को मिलती है। जब भी बच्चों में कुछ समस्या दिख तूल नहीं दें, बल्कि उस बच्चो को कैसे डील करें। ये हल निकालें। बच्चा अगर टीवी ज्यादा समय तक देखता है, तो आप उसके टीवी देखने का समय निर्धारित कर दें। इसके साथ-साथ उसे कुछ खास अच्छे कार्यक्रम देखने को प्रेरित करें जहां तक हो सके तो आप उसके साथ टीवी देखें ।
बच्चो को डांटने से बचे
7-8 साल का राहुल जब अपने माता-पिता को देखता उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो जाती है। उसकी समझ में कुछ नहीं आता है कि वे क्या करें जब वे अपने माता-पिता के साथ खाना खाता तो, माता-पिता के पूछते ही , खा क्यों नहीं रहें हो खाओ। तो वह गबर-गबर खाना शुरू कर देता है तो ऎसे में माता-पिता को डांटना या चीखना चिल्लाना नहीं चाहिए, बल्कि बच्चो को कोई भी बात बहुत प्यार से समझाएं। गलती होने पर उसे सुधारें और अपनी परेशानियों को शेयर करने का पूरा मौका दें। माता-पिता तो बच्चो के एक अच्छे गाइड होते हैं अगर आप उन्हें सिर्फ डांट और बेइजत करते रहेंगे तो वे बात मानने के बजाय और भी ज्यादा बेपरवाह बन जाएंगे। ऎसे में माता-पिता को चाहिए कि उन्हें सिखाए कि अपने परिवार के सदस्यों के साथ और दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ कैसे रिश्ता बना कर रखना और दूसरों के साथ मधुर संबंध कैसे बनाएं जाएं । बच्चो के साथ कम्युनिकेशन बना कर रखें। बच्चो कभी माता-पिता से डरें या घबराएं नहीं बल्कि अपनी बात खुल कर कहें।