मानसिक संतुलन बनाने में सहायक है चूडियां, इन रोगों की घटती है संभावना
प्राचीन वैज्ञानिको,
ऋषियों ने कुछ ऐसे रीति रिवाज, कुछ ऐसे उपकरण बनाये जिससे औरतों के मन और
स्वास्थ्य की रक्षा हो सके, प्रचलन में बढने पर इनको सुन्दर गहनों का रूप
मिलने लगा और यह नियमपूर्वक पहने जाने लगे। आपको बता दें कि उत्तरप्रदेश के
फिरोजाबाद को सुहाग नगरी भी कहा जाता है। यह चूडियों का शहर है। अकबर ने
फिरोज शाह नामक व्यक्ति के नेतृत्व में एक सेना यहां भेजी थी ताकि लुटेरों
का सफाया किया जा सके। फिरोजशाह का मकबरा आज भी बसस्टैड के पार मौजूद है।
इन्हीं फिरोज शाह के नाम से शहर का नाम फिरोजाबाद रखा गया था। शुरू से ही
यह शहर कांच की चूडियां व कांच की ही अन्य कलात्मक वस्तुओं के लोकप्रिय है।
फिरोजाबाद में लगभग 400 कांच उद्योग स्थापित हो चुके हैं जो कि विभिन्न
प्रकार की कलात्मक वस्तुएं और चूडियां बनाते हैं।
कहा जाता है सभी तथ्य
हमें चूडियों की सकारात्मक ऊर्जा की महत्ता समझाती हैं। इन्हें पहनने का
किताना लाभ है। रिसर्च के अनुसार जब महिला के दोनों हाथों में काफी सारी
चूडियां पहनी जाती हैं तो यह खास प्रकार की ऊजा्र पैदा करती हैं, जिन्हें
धार्मिक संदर्भ से मरक कहा जाता है। यह ऊर्जा उस महिला को हर प्रकार की
बुरी नजर से बचा कर रखती हैं।
महिला का शरीर और मन पुरूषों की अपेक्षा कोमल, संवेदनशील माना गया है।
औरतों के शरीर में हारर्मोस के उतार चढाव का शरीर और मन, विचारों पर काफी
प्रभाव होता है। घर परिवार की बीसों जिम्मेदारियों की बात की जाय तो औरतें
तन-मन से समर्पित रहती हैं।
चूडी कलाई की त्वचा से घर्षण करके हाथों में रक्त संचार बढाती है। यह घर्षण
ऊर्जा भी पैदा करता है जो कि थकान को जल्दी हावी नहीं होने देता।
यह चूडियां नव-विवाहित के श्रृंगार को भी बढाने के काम आती हैं। शादी के
बाद तो जैसे इन्हें पहनना जरूरत-सा हो जाता है। चाहे वह प्राचीन समय की बात
हो या आज की आधुनिक युग जहां इंडिया जैसे सांस्कृतिक देश में भी महिलाएं
पश्चिमी सभ्यता को अपनाते हुए मॉडर्न हो गई हैं। लेकिन इन सब के बावजूद
महिलाओं द्वारा भी पारम्परिक रूप से चूडियां पहनी जाती हैं। केवल परम्पराओं
के लिए ही नहीं, इसे फैशन स्टाइल का नाम देते हुए भी अलग-अलग डिजाइन की
चूडियां पहनी जाती है।